जिस घर में मुनिराज के चरण नहीं पड़ते, वह घर शमशान के समान
राजा श्रेयांश की चौके में हुए मुनि वृषभसागर महाराज के आहार।
पँचकल्याक के चौथे दिन ज्ञान कल्याणक मनाया
शिवपुरी:-
जैन मुनि रत्नात्रय की आराधना में लगे रहते हैं, और तपवृद्धि एवं रत्नात्रय की रक्षा के लिये 24 घंटे में एकबार खड़े होकर शुद्ध प्रासुक आहार-जल ग्रहण करते हैं। यही कारण है, कि वह आहार के लिये श्रावक के चौके तक जाते हैं। वह श्रावक अपने आपको पुण्यशाली मानता है, जिसके चौके में मुनिराज के चरण पड़ते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है, जो सम्यकदृष्टि श्रावक मुनिराज को नवधा भक्तिपूर्वक आहार कराता है, वह नियम से भोगभूमि का जीव बनता है। वह घर पवित्र हो जाता है, और जिस घर मे मुनिराज के आहार न हुए हों, उस घर शमशान की भूमि के समान कहा है।
मुनिराज को आहारदान देने के लिये पडग़ाहन अपने भरत चक्रवर्ती भी अपने परिवार के साथ अपने महल के बाहर खड़ा होता है। उक्त मंगल प्रवचन मुनिश्री अभयसागर महाराज ने पंचकल्याणक के दौरान दिये। मुनि श्री प्रभातसागर महाराज ने कहा कि मार्ग पर चलना तो कठिन है ही, परंतु मार्ग बना कर चलना उससे भी ज्यादा कठिन है।
युग के आदि में बृषभसागर मुनिराज ने मोक्षमार्ग कैसा होता है, उसका दिग्दर्शन करया साथ ही यह मुनिधर्म पंचम काल के अंत तक चलता रहे, और श्रावक अपना पापकर्म धोकर पुण्यार्जन कर सकें, इसलिए वह आहार के लिए जाते हैं। उन्होनें कहा कि अपने हाथ से दिया हुआ दान ही फलित होता है, और अनुमोदना का फल भी उसी रूप में मिलता है। अत: दान अपने हाथ से देना चाहिए। किसी से दिलवाना नहीं चाहिये।
आज जिनका हम ज्ञानकल्याणक मना रहे हैं, ऐसे वृषभनाथ भगवान दीक्षा के बाद मुनि अवस्था में जब आहार को उठे, उसके बाद भी उन्होंने 7 माह 13 दिन तक विधि नही मिली क्योंकि उस समय श्रावक नवधाभक्ति नहीं जानते थे। आदि पुराण में इसका उल्लेख आया कि जब वह हस्तिनापुर पहुंचते हैं, और विधि नहीं मिलती तब राजा श्रेयांश इतने संक्लेश से घिर जाते हैं कि उसी समय उन्हें पूर्व भव का जाति स्मरण होता है, तब नवधाभक्ति पडग़ाहन करके आहारदान दिया।
राजा श्रेयांश के चौके में हुई आहारचर्या
आज प्रात: तप कल्याणक की पूजन हुई, तत्पश्चात महामुनि बृषभसागर महाराज की आहार चर्या हुई। आहार चर्या कराने का सौभाग्य पंचकल्याणक में राजा श्रेयांस बने प्रमोद-श्रीमती सीमा जैन (एल एम एल)जडीबुटी वाले परिवार एवं राजा सोम रामस्वरूप-मंजू जी महरौली वाले परिवार को प्राप्त हुआ। इसके अलावा समाज के अन्य लोगों को भी आहार चर्या में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
इस हेतु पांडाल में एक विशाल चौका लगाया गया था, जिसमें प्रमुख पात्रों के साथ कई लोगों को मुनिराज को आहारदान देने का लाभ प्राप्त हुआ।इसके बाद ज्ञान कल्याणक महोत्सव की मंत्र आराधना, तिलकदान, मुखोद्घाटन, नेत्रोन्मीलन, प्राण प्रतिष्ठा, सूरिमंत्र, केवलज्ञान उत्पत्ति, की क्रियायें हुईं। तत्पश्चात भगवान का विशाल समवशरण लगा।
समवशरण में गणधर के रूप में तीनों महाराज ने समोशरण में विराजमान होकर श्रावकों की जिज्ञासाओं का समाधान किया। इसके पूर्व पंचकल्याणक में लगातार चाय-पानी की सेवा प्रदान करने बाले, जन्म कल्याणक जुलूस में जुलूस का स्वागत करने वाले विभिन्न समाजों संगठनों एवं व्यक्तियों का शॉल, श्रीफल एवं तिलक लगाकर सम्मान पंचकल्याणक समिति द्वारा किया गया।
उल्लेखनिय है कि दिगम्बर जैन समाज के इन दिनों पंचकल्याणक महोत्सव का आयोजन आचार्य भगवन 108 श्री विद्यासागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य मुनि श्री अभयसागर महाराज, मुनि श्री प्रभातसागर, मुनि श्री निरीह सागर महाराज के सान्निध्य एवं प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया सुयश एवं सह प्रतिष्ठाचार्य पं. सुगनचंदजैन आमोल के निर्देशन में महती धर्म प्रभावना के साथ चल रहा है।
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