खुशियों की दास्तां सफलता की कहानी दीदियों की जुबानी
ग्वालियर 11 सितम्बर 2021:-
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्वालियर जिले में गठित स्व-सहायता समूहों से जुड़ीं दीदियों ने सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में नए प्रतिमान गढ़े हैं। इन दीदियों की सफलता की दास्तां अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गईं हैं। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जिले में अभी तक 3 हजार 296 महिला स्व-सहायता समूह गठित हो चुके हैं। इनसे 36 हजार 945 ग्रामीण परिवार जुड़े हैं। कभी चौका-बर्तन तक सीमित रहीं ये ग्रामीण महिलायें अब आत्मनिर्भर भारत की नई इबारत लिख रही हैं।
ग्वालियर जिले के ग्राम कल्याणी की निवासी श्रीमती रहीसा बेगम बताती हैं कि हमारे परिवार ने बड़ी आर्थिक तंगी में दिन गुजारे हैं। मेरे पति साइकिल पर रोजमर्रा की जरूरतों का सामान लेकर गाँव-गाँव बेचने जाया करते थे। पर इतना नहीं कमा पाते कि परिवार की गाड़ी आराम से चल जाए। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद हमारे परिवार के दिन फिर गए। हमने गाँव की महिलाओं के साथ मिलकर अली स्व-सहायता समूह बनाया। समूह की साख बढ़ी तो सरकार ने हमें सरकारी स्कूलों के बच्चों की यूनीफार्म तैयार करने का काम दिया। दीदी गारमेन्ट के नाम से हम सबने यूनीफार्म तैयार की। आज हमारे गाँव की लगभग 100 महिलाएँ सिलाई-कढ़ाई से जुड़कर आत्मनिर्भर बन गई हैं। अगर पूरे जिले की बात करें तो विभिन्न स्व-सहायता समूहों से जुड़ीं 1200 से अधिक दीदियों ने एक लाख 27 हजार यूनीफॉर्म तैयार कर 2 करोड़ 89 लाख रूपए का लाभ कमाया है। रहीसा बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान हमारे समूह ने बड़े पैमाने पर मास्क एवं पीपीई किट का निर्माण किया। उनका कहना है कि दीदी गारमेन्ट से जुड़ीं ज्यादातर समूहों की दीदियाँ लखपति क्लब में शामिल हो गई हैं।
इसी तरह ग्राम छीमक निवासी श्रीमती पुष्पा कुशवाह व ग्राम हस्तिनापुर निवासी श्रीमती रजनी जैतवार अपने गाँव में बैंक वाली दीदी के नाम से मशहूर हैं। उनका कहना था कि अगर हम आजीविका मिशन के समूह से नहीं जुड़ते तो अभी तक केवल रोटियाँ बेल रहे होते। पुष्पा बताती हैं कि हमारी खुद की दुकान है और गाँव की कई महिलाओं को हमने समूहों के जरिए रोजगार दिलाया है। रजनी ने गाँव की 80 से अधिक महिलाओं के बैंक में खाते खुलवाए हैं और जरूरतमंदों को बैंक से ऋण भी दिलवाया है।
मशरूम वाली दीदी के नाम से प्रसिद्ध ग्राम समूदन निवासी श्रीमती अनीता जाटव का कहना था कि हमने समूह से मिली मदद के जरिए मशरूम का उत्पादन शुरू किया। शुरूआत में 4 क्विंटल तक मशरूम हमने पैदा किया। पहली साल हमें 50 हजार रूपए की आमदनी हुई। अनीता से प्रेरणा लेकर आस-पास के आधा दर्जन गाँवों की 28 महिलायें मशरूम उत्पादन से जुड़ गई हैं। अनीता बताती हैं गाँव की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर स्व-सहायता समूहों के जरिए मशरूम के अलावा दाल, अचार व चिप्स इत्यादि बना रहे हैं, जिससे हम सबको स्थायी आमदनी का जरिया मिल गया है और बैंकों में भी साख बढ़ गई है। अनीता का कहना था कि जो बैंक वाले पहले हमें बिल्कुल भी तवज्जो नहीं देते थे वे अब चाय पिलाकर हमारी आवभगत करते हैं।
गेहूँ उपार्जन के काम से जुड़े ग्राम चीनौर के चाड़ौल माता स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती नारायणी बाथम ने इस साल महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से सफलतापूर्वक सरकार के गेहूँ उपार्जन कार्यक्रम का काम किया है। नारायणी बताती हैं कि पति के असामयिक निधन के बाद जीने का कोई सहारा नहीं दिख रहा था। ऐसे में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने हमारे परिवार को थाम लिया। नारायणी के अनुसार इस साल ग्वालियर जिले में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के 14 समूहों द्वारा 2462 किसानों से समर्थन मूल्य पर 2 लाख 90 हजार क्विंटल गेहूँ का उपार्जन किया गया। गेहूँ उपार्जन से दो माह के भीतर 58 लाख रूपए का शुद्ध लाभ कमाया है।
इसी तरह ग्राम भयपुरा की जय माता दी समूह की अध्यक्ष श्रीमती रीमा कुशवाह और बंधौली ग्राम की पार्वती समूह की अध्यक्ष श्रीमती ललिता राजपूत, खाद्य प्रसंस्करण से जुड़कर आत्मनिर्भर बन गई हैं। रीमा का कहना है कि जब हमारे समूह ने अच्छा काम किया तब सरकार की ओर से समूह को खाद्य प्रसंस्करण के लिए साढ़े चार लाख रूपए की मदद दी गई। इससे हमारे समूह ने मसाला उत्पादन यूनिट को और ऊँचाईयाँ प्रदान कीं। हमारे समूह द्वारा बनाए गए मसाले सर्व ग्वालियर एप के माध्यम से जिला ही नहीं प्रदेशभर में पहुँच रहे हैं।
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के समूह से जुड़ीं श्रीमती ललिता राजूपत दीदी कैफे का सफल संचालन कर रही हैं। कोरोनाकाल में बेरोजगार हुए अपने दोनों बेटों को भी ललिता राजपूत ने समूह के जरिए आत्मनिर्भर बना दिया है। ग्राम निकोड़ी निवासी समाधि बाबा स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती ऊषा रावत ने पौधों की नर्सरी स्थापित कर सफलता के नए आयाम स्थापित किए हैं।
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