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स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर नगर में वही देशभक्ति की धारा

 डबरा ब्रेकिंग/भरत रावत (डबरा)

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर डबरा ब्रेकिंग

डबरा:-


अखंड भारत संकल्प दिवस का आयोजन स्थानीय अग्रसेन चौराहे पर बालाजी कॉन्प्लेक्स के सामने विश्व हिंदू परिषद जिला डबरा के द्वारा किया गया जिसमें भारत माता एवं भगवान श्री राम की महा आरती के साथ सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया कि हम भारत को अखंड बनाएंगे कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में विश्व हिंदू परिषद डबरा के जिलाध्यक्ष एवं सह प्रांत प्रचार प्रमुख विश्व हिंदू परिषद मध्य भारत प्रांत दीपक भार्गव ने कहा अखंड भारत की कल्पना आज के परिवेष में आप लोंगो के लिए हस्य्यासपद होगा ,किन्तु यह कल्पना कोरी कल्पना नहीं है आज जहा भारत की सीमा कश्मीर से कन्याकुमारी और आसाम से गुजरात तक मानते है।  वास्तव में यह आज के  परिवेश का भारत है। वैदिक काल में कितने तपस्वी हुए जो हिमालय के इस पार और उस पार निर्बाध्य रूप से आवागमन करते थे। आर्य स्वम कहा से आये थे? यह हम्मरे अखंड भारत का प्रमाण है। चाणक्य ने अखंड भारत के लिए अपना सर्वस्व लूटा दिया। मगध  के शासक धनानद के आगे घुटने नहीं टेके ,क्योंकि अखंड भारत के लिए मगध के अहम् कड़ी थी। अखंड भारत या वृहत्तर भारत की चर्चा होते ही जानकारों के मन में सबसे पहले ब्रिटिश कालीन भारत का नक्शा उभरता है। पर जानकर हैरत होगी, इतिहासकारों ने माना है कि 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले दो हजार पांच सौ सालों में हुआ 24वां भौगोलिक और राजनीतिक विभाजन था। 1857 से 1947 के बीच अंग्रेजों ने तो भारत को सात बार ही तोड़ा।

पिछले दो सौ सालों में अपनी एक तिहाई जमीन खो चुके भारत देश को कुछ लोगों ने ईरान, वियतनाम, कंबोड़िया, मलेशिया, फिलीपींस, श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और बर्मा से जोड़ा है। वहीं धार्मिक मिजाज के लोग अखंड भारत के तौर पर वाल्मिकी रामायण के ‘नवद्वीप भारत’ की कल्पना करते हैं।

विचारधारा और राजनीति के माहिरों के मुताबिक ये बहुत भावुक सवाल भर है। लेकिन उनके ही सवाल-जवाब पर गौर करके मैंने पाया है कि भावुक नहीं बल्कि भावनात्मक प्रश्न होते हुए भी यह विचार और प्रचार के लायक है। यह पूरी तरह व्यावहारिक और निश्चित साकार होने वाला सपना है।

दुनियाभर में आमतौर पर माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप से ज्यादा सांस्कृतिक, राजनैतिक, सामरिक और मौजूदा दौर में आर्थिक हमले और कहीं नहीं हुए हैं। ऐसे उतार चढ़ाव से भरे भारतीय इतिहास में ये तब्दीली क्यों नहीं आ सकती जो जर्मनी बंटने के 50 सालों के भीतर ही वहां मुमकिन हो गई। बर्लिन की दीवार ढही। दो हजार सालों के बाद इजरायल का गठन भी किसी मजबूत उदाहरण से कम नहीं। यमन के एकीकरण की बलशाली होती संभावनाएं यहां की उम्मीदें भी कम नहीं होने देती। हालात हमेशा एक जैसे नहीं होते। याद रखना होगा कि मोहम्मद गोरी के आखिरी हमले के बाद से आज तक भारत के इतिहास ने कई उल्लेखनीय करवटें ली हैं। इसलिए हमें आज संकल्प होना है कि एक ना एक दिन वह भारत जो एक विश्व गुरु की भूमिका में था अखंड होकर पुनः स्थापित होगा और हम पुनः विश्व गुरु की पदवी पर आसीन होकर संपूर्ण राष्ट्र का नेतृत्व करते हुए संपूर्ण विश्व को दिशा देने का काम करेंगे। कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद के जिला मंत्री प्रदीप राजावत, उपाध्यक्ष नेमीचंद्र अग्रवाल ,उपाध्यक्ष रविंद्र सिंह चौहान, उपाध्यक्ष राजू चौधरी ,सह मंत्री  ऋषि पहाड़िया, कोषाअध्यक्ष लोकेश अग्रवाल, बजरंग दल जिला संयोजक सचिन मारवाड़ी ,संदीप सैनिक धर्मेंद्र (रिंकू) चौधरी सौरभ दुबे हरिओम मिश्रा हिमांशु शर्मा भूपेंद्र भार्गव संदीप पांडे पंकज गुप्ता भूरा रावत गोलू पाल एवं देशभक्त लोग सैकड़ों की संख्या में उपस्थित थे। में वही देशभक्ति की धारा*।


अखंड भारत संकल्प दिवस का आयोजन स्थानीय अग्रसेन चौराहे पर बालाजी कॉन्प्लेक्स के सामने विश्व हिंदू परिषद जिला डबरा के द्वारा किया गया जिसमें भारत माता एवं भगवान श्री राम की महा आरती के साथ सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया कि हम भारत को अखंड बनाएंगे कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में विश्व हिंदू परिषद डबरा के जिलाध्यक्ष एवं सह प्रांत प्रचार प्रमुख विश्व हिंदू परिषद मध्य भारत प्रांत दीपक भार्गव ने कहा अखंड भारत की कल्पना आज के परिवेष में आप लोंगो के लिए हस्य्यासपद होगा ,किन्तु यह कल्पना कोरी कल्पना नहीं है आज जहा भारत की सीमा कश्मीर से कन्याकुमारी और आसाम से गुजरात तक मानते है।  वास्तव में यह आज के  परिवेश का भारत है। वैदिक काल में कितने तपस्वी हुए जो हिमालय के इस पार और उस पार निर्बाध्य रूप से आवागमन करते थे। आर्य स्वम कहा से आये थे? यह हम्मरे अखंड भारत का प्रमाण है। चाणक्य ने अखंड भारत के लिए अपना सर्वस्व लूटा दिया। मगध  के शासक धनानद के आगे घुटने नहीं टेके ,क्योंकि अखंड भारत के लिए मगध के अहम् कड़ी थी। अखंड भारत या वृहत्तर भारत की चर्चा होते ही जानकारों के मन में सबसे पहले ब्रिटिश कालीन भारत का नक्शा उभरता है। पर जानकर हैरत होगी, इतिहासकारों ने माना है कि 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले दो हजार पांच सौ सालों में हुआ 24वां भौगोलिक और राजनीतिक विभाजन था। 1857 से 1947 के बीच अंग्रेजों ने तो भारत को सात बार ही तोड़ा।

पिछले दो सौ सालों में अपनी एक तिहाई जमीन खो चुके भारत देश को कुछ लोगों ने ईरान, वियतनाम, कंबोड़िया, मलेशिया, फिलीपींस, श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और बर्मा से जोड़ा है। वहीं धार्मिक मिजाज के लोग अखंड भारत के तौर पर वाल्मिकी रामायण के ‘नवद्वीप भारत’ की कल्पना करते हैं।

विचारधारा और राजनीति के माहिरों के मुताबिक ये बहुत भावुक सवाल भर है। लेकिन उनके ही सवाल-जवाब पर गौर करके मैंने पाया है कि भावुक नहीं बल्कि भावनात्मक प्रश्न होते हुए भी यह विचार और प्रचार के लायक है। यह पूरी तरह व्यावहारिक और निश्चित साकार होने वाला सपना है।

दुनियाभर में आमतौर पर माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप से ज्यादा सांस्कृतिक, राजनैतिक, सामरिक और मौजूदा दौर में आर्थिक हमले और कहीं नहीं हुए हैं। ऐसे उतार चढ़ाव से भरे भारतीय इतिहास में ये तब्दीली क्यों नहीं आ सकती जो जर्मनी बंटने के 50 सालों के भीतर ही वहां मुमकिन हो गई। बर्लिन की दीवार ढही। दो हजार सालों के बाद इजरायल का गठन भी किसी मजबूत उदाहरण से कम नहीं। यमन के एकीकरण की बलशाली होती संभावनाएं यहां की उम्मीदें भी कम नहीं होने देती। हालात हमेशा एक जैसे नहीं होते। याद रखना होगा कि मोहम्मद गोरी के आखिरी हमले के बाद से आज तक भारत के इतिहास ने कई उल्लेखनीय करवटें ली हैं। इसलिए हमें आज संकल्प होना है कि एक ना एक दिन वह भारत जो एक विश्व गुरु की भूमिका में था अखंड होकर पुनः स्थापित होगा और हम पुनः विश्व गुरु की पदवी पर आसीन होकर संपूर्ण राष्ट्र का नेतृत्व करते हुए संपूर्ण विश्व को दिशा देने का काम करेंगे। कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद के जिला मंत्री प्रदीप राजावत, उपाध्यक्ष नेमीचंद्र अग्रवाल ,उपाध्यक्ष रविंद्र सिंह चौहान, उपाध्यक्ष राजू चौधरी ,सह मंत्री  ऋषि पहाड़िया, कोषाअध्यक्ष लोकेश अग्रवाल, बजरंग दल जिला संयोजक सचिन मारवाड़ी ,संदीप सैनिक धर्मेंद्र (रिंकू) चौधरी सौरभ दुबे हरिओम मिश्रा हिमांशु शर्मा भूपेंद्र भार्गव संदीप पांडे पंकज गुप्ता भूरा रावत गोलू पाल एवं देशभक्त लोग सैकड़ों की संख्या में उपस्थित थे।

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