तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा -सुशील कुमार शास्त्री
डामरोंन कलां में श्रीमद भागवत कथा का चतुर्थ दिवस
करैरा, ग्राम डामरोंन कलां में श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ स्व.श्याम विहारी श्रीवास्तव के पुत्र अरुण कुमार,अनिल कुमार,अरविन्द कुमार अवनेश कुमार,संजय, अवधेश श्रीवास्तव द्वारा सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय कराया जा रहा है।
कृष्ण जन्म का आयोजन बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया इस अवसर पर व्यास पीठ से आचार्य सुशील कुमार शास्त्री ने कृष्ण जन्म की कथा बड़े ही रोचक ढंग से सुनाई उन्होंने बताया कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।
एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।
रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।
तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?'
कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।
वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।
उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी।
जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।
तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।'
उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।
अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।
उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।'
भगवान के जन्मोत्सव पर भक्त झूम उठे ।
साथ ही साहित्यकार सतीश श्रीवास्तव ने कविता सुनाई ।
इस अवसर पर आनंद स्वरुप श्रीवास्तव एडवोकेट ,हर्ष वर्धन दुबे,नवीन श्रीवास्तव,सजल,वीरसिंह चौहान, प्रदीप,प्रशांत,सचिन,अखिलेश श्रीवास्तव,मदन विहारी श्रीवास्तव एडवोकेट,अंश,सूर्यांश,आरव,एवं ऋषभ सहित बड़ी संख्या में ग्रामीणजन एवं परिवार के सदस्य उपस्थित रहे ।
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