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रहीसा बेगम ने गाँव की 350 महिलाओं के घरों में भरे खुशियों के रंग

 खुशियों की दास्तां 

(प्रदेश सरकार के एक साल के सफल  कार्यकाल पर विशेष)

 



ग्वालियर 27 मार्च 2021/ कभी दूसरे के घरों में चौका-बर्तन करने वाली रहीसा बेगम अपने गाँव ही नहीं समीपवर्ती अन्य गाँवों की महिलाओं के लिये रोल मॉडल बन गई हैं। रहीसा ने अपने हौसले व जज्बे की बदौलत एक साल के भीतर अपने घर में ही नहीं गाँव की 350 से अधिक महिलाओं के घरों में खुशियों के रंग भर दिए हैं। घोर गरीबी से दो – चार रहीं रहीसा पहले खुद आत्मनिर्भर बनीं और फिर गाँव की अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई। 


महिला सशक्तिकरण एवं आत्मनिर्भर बनने की यह सच्ची दास्तां ग्वालियर जिले के डबरा विकासखण्ड के ग्राम कल्याणी निवासी श्रीमती रहीसा बेगम की है। बीते साल 23 मार्च को जब  मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश में नई सरकार बनी तब वैश्विक महामारी कोरोना का संकट छाया हुआ था। कोरोना से बचाव के लिये लोगों को मास्क मुहैया कराना सरकर के लिये भी बड़ी चुनौती बन गई थी। तभी मुख्यमंत्री श्री चौहान ने आह्वान किया कि आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की अवधारणा को साकार करने के लिए स्व-सहायता समूहों की दीदियों से मास्क बनवाए जाएँ। मुख्यमंत्री की इस पहल ने रहीसा बेगम की तकदीर और उनके घर की तस्वीर बदल दी। 

रहीसा बेगम राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बने अली स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष थीं। उन्होंने इस समूह के जरिए मास्क तैयार करने का निर्णय लिया। उन्होंने समूह की 13 सदस्यों सहित सिलाई करने वाली गाँव की 70 महिलाओं का एक संकुल बनाया और मास्क तैयार करने में जुट गईं। समूह ने देखते ही देखते जिला प्रशासन को लगभग 80 हजार मास्क तैयार कराकर उपलब्ध करा दिए। इन मास्क से रहीसा बेगम को लगभग 25 हजार और उनकी साथी महिलाओं को 8 से 10 हजार रूपए का फायदा हुआ। समूह की महिलाओं की लगन और मेहनत को देखकर जिला प्रशासन ने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा के अनुरूप इस समूह को स्कूली बच्चों के लिये पाँच हजार गणवेश (यूनीफार्म) तैयार करने का काम भी सौंपा। जाहिर है रहीसा बेगम और उनकी साथी दीदियाँ अब आत्मनिर्भर बन गईं हैं। रहीसा ने अपने समूह के अलावा गाँव में 30 स्व-सहायता समूहों का गठन कराया है। जिनसे जुड़कर लगभग 350 महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए हैं। ये महिलायें कहती हैं कि रहीसा बेगम ने कल्याणी गाँव का कल्याण कर दिया है। 

अतीत में झाँकें तो रहीसा बेगम ने अपने पुराने दिन बड़ी गरीबी में गुजारे हैं। उनके पति साइकिल के कैरियर पर डलिया रखकर गाँव-गाँव में सब्जी बेचने जाते थे। दो बेटों के लालन-पालन का बोझ और बेटी की शादी की चिंता उन्हें खाए जा रही थी। रहीसा बेगम ने राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बने अली स्व-सहायता समूह से जुड़कर गरीबी की दीवार तोड़ दी है। इस समूह से जुड़ने के बाद उन्होंने अन्य महिलाओं के सहयोग से अपनी छोटी-मोटी आर्थिक गतिविधियाँ शुरू कीं। इसके लिये उन्हें बैंक से तीन बार में लगभग सवा दो लाख और ग्राम संगठन से दो बार में लगभग एक लाख तीस हजार रूपए की आर्थिक मदद मिली। 

समूह से आर्थिक मदद लेकर रहीसा बेगम ने अपने पति श्री सिकंदर के लिये गाँव में ही सब्जी की दुकान खुलवा दी। दुकान से आमदनी बढ़ी तो अपने बड़े बेटे को लाईट-टेंट का सामान दिलवा दिया। अब गाँव के कार्यक्रमों में रहीसा बेगम का ही टेंट लगता है। टेंट से आमदनी बढ़ी तो रहीसा ने मुद्रा योजना के तहत आर्थिक मदद लेकर गाँव में कोसमेटिक की दुकान खोल ली। अब रहीसा के घर के तीन सदस्य अलग-अलग आर्थिक गतिविधियों से कमाई कर रहे हैं। रहीसा ने धूमधाम के साथ अपनी बेटी की शादी भी कर दी है। उनका छोटा बेटा इरफान बी फार्मा की पढ़ाई कर रहा है। रहीसा केवल खुद ही आत्मनिर्भर नहीं बनी हैं 

27 आदिवासी महिलाओं के घर शौचालय भी बनवाए 

रहीसा बेगम सामाजिक सरोकारों एवं समाज सेवा में भी रूचि रखती हैं। एक बार जब उन्हें ग्राम संगठन की बैठक में पता चला कि समूह से जुड़ीं कुछ आदिवासी महिलाओं के घर में शौचालय नहीं है तो उन्होंने उनके घर में शौचालय बनवाने की ठान ली। रहीसा जनपद पंचायत कार्यालय गईं और स्वच्छ भारत मिशन के अधिकारियों को गाँव में बुलाया। साथ ही ग्राम संगठन से शौचालय बनाने के लिये एक लाख रूपए की आर्थिक मदद दिलाई। इससे गाँव की 27 अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के घर में अब पक्के शौचालय बन गए हैं। जिन आदिवासी महिलाओं के घरों में शौचालय बने हैं वे दिन रात रहीसा बेगम का गुणगान करतीं रहतीं हैं। 

हितेन्द्र सिंह भदौरिया

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